मध्य प्रदेश का संस्कृत ग्राम झिरी

रेडियो कार्यक्रमों के निर्माण की प्रक्रिया में मेरी मुलाकात कई अदभुत व्यक्तियों से हुई है और कई शहरों तथा गाँवों को नज़दीक से देखने और समझने के अवसर भी मुझे मिले हैं । मेरे लिए जहाँ डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को नज़दीक से देखना और उन्हें रिकॉर्ड करना एक बेहद रोमांचकारी अनुभव रहा है तो वहीं झिरी ग्रामवासियों से साक्षात्कार करना भी कम रोमांचकारी अनुभव नहीं था । वस्तुत: यह ऐसा गाँव है जिसे मैं शायद ही कभी भूल पाऊँ । इस गाँव से लौटते समय मैंने अपने अन्दर एक सकारात्मक ऊर्जा को महसूस किया जो मुझे निश्चित रूप से झिरी ग्रामवासियों से मिली थी ।

झिरी ग्राम मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के उत्तर पश्चिम में स्थित राजगढ़ ज़िले के अंतर्गत आता है और भोपाल से लगभग पौने दो सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । इस गाँव की ख़ासियत यह है कि यहाँ की लगभग एक हज़ार लोगों की आबादी में छ:सौ लोग धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं और दैनिक जीवन में इसी भाषा का उपयोग करते हैं । गाँव के लगभग पचास प्रतिशत घरों के सुसज्जित प्रवेश द्वारों पर आपको 'संस्कृत गृहम' लिखा दिखाई देगा । झिरी निवासी उदयनारायण चौहान बताते हैं कि जिन घरों के सभी सदस्य परस्पर संस्कृत में ही वार्तालाप करते है उन घरों को यह पदवी दी गई है ।
मध्यप्रदेश का झिरी गाँव भारत का दूसरा संस्कृत ग्राम है । कर्नाटक के शिमोगा ज़िले में स्थित मुत्तूर ग्राम का नाम झिरी से पहले लिया जाता है किन्तु यदि बारीकी से देखा जाय तो झिरी का नाम पहले आना चाहिए । दरअस्ल मुत्तूर की अस्सी फीसदी आबादी ब्राह्मणों की है जिन्हें संस्कृत विरासत में मिली है । शेष बीस प्रतिशत लोग अन्य जाति के हैं जो संस्कृत नहीं बोलते । इसके उलट झिरी में सिर्फ एक ब्राह्मण परिवार रहता है । यहाँ अधिकतर लोग क्षत्रिय और अनुसूचित जनजाति के हैं । एक दशक पहले जब यहाँ के ग्रामवासियों ने संस्कृत ग्राम का सपना देखा था तब यहाँ एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसे संस्कृत विरासत में मिली हो । गाँव के बड़े बुज़र्गों ने एक बैठक बुलाई और 'संस्कृत भारती' नामक संस्था से संपर्क किया जो संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संस्था है ।संस्कृत भारती ने ग्रामवासियों के इस महत्वाकांक्षी स्वप्न में यथार्थ का रंग भरने के उद्देश्य से गाँव में एक संस्कृत पाठशाला आरंभ की । इस बीच इस संस्था के इंदौर स्थित कार्यालय के एक स्वयंसेवी की मुलाकात विमला पन्ना नाम की एक ऐसी युवती से हुई जिसे संस्कृत पढ़ाने के लिए कहीं भी जाना स्वीकार्य था । विमला पन्ना मूल रूप से छतीसगढ़ की उराँव जनजाति से संबंध रखती थी और इसाई धर्म अपना चुकी थी । जब वह शिक्षा के लिए भोपाल आई तो उन्हें कॉलेज में अपना मनपसंद विषय राजनीतिशास्त्र नहीं मिल पाया और मजबूरी में उन्हें संस्कृत भाषा पढ़नी पड़ी । किन्तु समय से साथ विमला को संस्कृत में गहरी रूचि हो गई । भोपाल से पढ़ाई पूरी होने के पश्चात संस्कृत में महारत हासिल करने के उद्देश्य से पहले वे दिल्ली गई और फिर इंदौर ।
संस्कृत भारती ने जब विमला के समक्ष झिरी की संस्कृत पाठशाला में शिक्षिका के रूप में कार्य करने का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया । विमला जब झिरी पहुँची तो उन्हें यहाँ की बोली मालवी समझ में नहीं आती थी । उन्होंने मालवी सीखते हुए संस्कृत सिखाने का काम आरंभ कर दिया। गाँववालों ने विमला को गाँव की बेटी के रूप में स्वीकार किया और उसे यह अहसास नहीं होने दिया कि वह अपने घर से दूर है । संस्कृत पाठशाला में विमला के एक और सहकर्मी थे । धीरे धीरे दोनों के बीच संबंध प्रगाढ़ हुए और इन्होंने परस्पर विवाह करने का निर्णय लिया । विमला के घर वाले इस विवाह के लिए राज़ी नहीं थे । ऐसे में झिरी ग्रामवासियों ने अपनी इस लाड़ली की इच्छा का सम्मान करते हुए पूरी धूमधाम के साथ विवाह को संपन्न कराने की ज़िम्मेदारी ली । दुर्गाशंकर पांडेय नाम के एक ग्रामवासी ने विमला को गोद लिया और अपनी इस पुत्री का कन्यादान किया । आज विमला पहले से भी अधिक उत्साह के साथ संस्कृत के प्रसार में जुटी है और गाँव की महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रेरणा का विषय बनी हुई है । अपने प्रयोग की सफलता ने झिरीवासियों को एक अनूठे आत्मविश्वास से भर दिया है और अब वे नए-नए प्रयोग कर रहे हैं । वेदिक युग की कल्पना को साकार करता ये गाँव आज पूरी तरह नशामुक्त ग्राम होने के साथ-साथ बारिश की एक-एक बूँद को सहेजने के प्रयास में जुटा है । जल संरक्षण की पारम्परिक तकनीक को अपनाते हुए गाँव वाले वर्षाजल को यहाँ के कुओं का जलस्तर बढ़ाने के काम में ला रहे हैं । गत वर्ष इस क्षेत्र में लगभग सूखे जैसी स्थिति के बावजूद गाँव में जलसंकट उत्पन्न नहीं हुआ । समरसता और एकता में निहित शक्ति का जीता जागता उदाहरण बन चुका यह गाँव विकास की भारतीय अवधारणा को न सिर्फ सही सिद्ध करता है, बल्कि इस अवधारणा के प्रति हमारे विश्वास को और दृढ़ता प्रदान करता है ।

6 comments:

him said...

बहुत बढ़िया पोस्ट. मेरे अल्प ज्ञान-कोष में वृद्धि करने के लिए भी शुक्रिया . मैंने भी मुत्तुर के बारे में ही सुना था. आपसे एक अनुरोध है सर, किसी रोज़ मेरे साथ झिरी चलें ... इसके अलावा आपकी भोपाल विषयक पोस्ट भी फिर से पढ़ी , उम्दा !जब भी आपके ब्लॉग पर जाता हूँ इसे ज़रूर पढता हूँ ...क्यूंकि अब तो भोपाल और प्यारा लगता है न .

Rajesh Bhat said...

Very nice Sir G, Sare hi Blog pade . Aakpki lekhan sheli bhahut hi achhi he . kripya blog ki sankhya badaye.. aur bhi vishyo par likhe........

http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/ said...

राकेश भाई,
संस्कृत ग्राम सचमुच एक प्रेरणादायी पोस्ट। आज जहाँ इस देश की मातृभाषा ही लोगो की जबान से गायब हो रही है, ऐसे में वेद भाषा को अक्षुण्ण रखने का कार्य वाकई सराहनीय है। यही ग्राव झिरी हे, जो करीब 12 वर्ष पहले अवैघ हथियारों के कारण प्रकाश में आया था। आज इस गाँव की जो छबि है, वह देश के सभी नागरिकों के लिए गर्व करने वाली है। आपने यह रिपोर्टिंग की, जो सराहनीय है। मैं कायल हूँ आपकी लेखनी का। आपके ब्लॉग में पोस्ट बहुत ही कम हैं, पर जो भी हैं, उम्दा हैं। अभी देश क्या देश के किसी भी पत्रकार की नजर इस गाँव में नहीं पड़ा आश्चर्य है! आपको साधुवाद, बधाई
डॉ. महेश परिमल

ravindra goyal said...

Rajesh, its really been a pleasure to visit your blog. Your posts are close to the life. Masjido ka shahar, Sanskrit Gram... etc. are interesting and tempt one to read them repeatedly. Use of Hindi in 'Khadi Boli' with the touch of a writer made the post more interesating. Integration of photos in the post is really commendable.
Mere Camere se... very beautiful photographs, showing your candid sence of photography.
Your just keep on writing and we will keep enjoying reading them.
Best wishes.
Ravindra Goyal

my life babu said...

सब झुट है

my life babu said...

Ab jakar dekho ab to sanskrit name tak nahi ata wha ke logo ko