तीन क़ते रेलगाड़ी में

जब से एक खाली कुल्हड़
खिड़की से गिरा और चूर हुआ
मैं तमाम सफर खिड़की से
जो दूर हुआ तो दूर हुआ।
एक भीड़ मुसल॒सल
कस्बों ,शहरों का नाम पढ़ती रही ,चढ़ती रही, उतरती रही
मैं ख़ुद से तेरा पता पूछता रहा
तैरता रहा ,डूबता रहा।
तेरे शहर से गुज़रते वक्त
जिस्म में एक जुम्बिश सी हुई
बचपन में तुझ संग खेली कोई हवा
शायद मुझे छू के गई ।

4 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत अच्छा है भाई. बधाई.

आलोक said...

मुसल॒सल और जुम्बिश का मतलब बताइएगा। माफ़ कीजिएगा, कलात्मक भाषा मुझे पढ़ने में तो अच्छी लगती है पर कई शब्द समझ नहीं पाता इसलिए पूछ लेता हूँ।

him said...

sir bahut umda.....ghalib ka ek sher yaad aa raha hai....

khulta kisi pe kyun mere dil ka maamla ,

sheron ke intkhab ne ruswa kiya mujhe....

bhaskar rao said...

Sir,
Its too good, very fanastic photographs of bhopal as well as of andaman

Bhaskar Rao