नज़्म

मौसम बंधे थे क़दमों से ,
रुत आहट से बदल जाती थी ,
सर्द मौसम में बर्फ़ ढके आँगन पर
वो जो आ जाय तो धूप निकल आती थी .
ज़र्द हो रहे बुढ़ा रहे चिनारों पर ,
बेमौसम ही बहार उतर आती थी ,
कड़ी धूप से दरकी हुई ज़मीन पर ,
साथ क़दमों के फुहार चली आती थी .
घुटन भरे उदास सावन में,
यकायक साँस लौट आती थी ,
उन क़दमों की आहट सुनते ही
बरसात भी थम जाती थी ।
वो क़दम जिन्हें थाम के चूमा था ,
मेरी हद से दूर निकल गए ,
जिंदा मछलियों के मानिंद हाथ से ,
सारे मौसम फिसल गए ।

3 comments:

him said...
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him said...

unka karam hai unki muhabbat
kya mere naghme kya meri hasti !

achchi hai !

Unknown said...

wah...wah...kya likha hai chachu :)
ab main to aur kya kahun.."behtereen" is "THE" word