नज़्म

मौसम बंधे हैं क़दमों से ,
रुत आहट से बदल जाती है ,
सर्द मौसम में बर्फ़ ढके आँगन पर
वो जो आ जाय तो धूप निकल आती है .
ज़र्द हो रहे बुढ़ा रहे चिनारों पर ,
बेमौसम ही बहार उतर आती है,
कड़ी धूप से दरकी हुई ज़मीन पर ,
साथ क़दमों के फुहार चली आती है.
घुटन भरे उदास सावन में,
यकायक साँस लौट आती है,
उन क़दमों की आहट सुनते ही
बरसात भी थम जाती है .

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