दूसरा छोर






तुम मेरी तरह हो...बिल्कुल मेरी तरह
हम पर बिछी ये रेत एक सी
चलने वाले अलग रहे हों भले ही
क़दमों की लकी़रें एक सी
मैं भी आधा भीगा ,आधा सूखा तुम सा
आधा डूबा आधा तिरता तुम सा
गीले टुकड़ों पर काई का रंग दूब का रंग
सूखे छोरों पर उग आई नागफनी के फूलों का रंग....
हर मोड़ पर मुडे़ हैं संग संग लहरों की तरह
या कि मुड़ती हैं पटरियाँ हर मोड़ पर जिस तरह
हम दोनों को छूती ,भिगोती,
हम में से होकर बहती ये ठंडी धार
हम कितने एक से हैं .....ओ ..नदी के दूसरे छोर

3 comments:

Rajendra Kumar Mungali said...

subhan allah...kya likhte ho khan.
if i will read your creations daily very soon i will start to write too becouse they force me to do so.

Dr. Mahesh Parimal said...

मियाँ राकेश
ब्लाग तॊ शुरु कर दिया पर उसमें कुछ डालना भी पड़ता है। अगस्त के बाद सितम्बर आधा निकल गया पर ब्लाग में कॊई नई कविता पढ़ने कॊ नहीं मिली । कॊं खाँ ये क्या हॊ रिया हे। कुछ नया लिखॊ तॊ डाल देना बलाग में हम तॊ देखतेच्च रहते हैं।
डॉ महेश परिमल

kheti said...

Wah ! Wah!.

Bahut Khoob. Kaash mein be Himalay mein paida hui hoti.

Ruchi